मन की
संरचना
मन के तीन आयाम हैं. इनमे से पहला आयाम चेतन (जाग्रत
अवस्था) है. जिसमे हम अपने सभी इच्छित कार्य करते हैं.
इसका दूसरा आयाम अचेतन है जो कि सभी अनैक्षित कार्य करते
है. यहाँ शरीर की उन सभी कार्यों का संपादन होता है जिनके लिए हमें कोई इच्छा नहीं
करनी पढ़ती है. जैसे रुधिर सञ्चालन, पलको का गिरना, पाचन क्रिया. हारमोंस का निकलना
वगैरा वगैरा. हमारी नींद भी इसी से सम्बन्ध रखती है,
तीसरा आयाम है अतिचेतन.
इन तीनों आयामों वाला मन ठीक भौतिक पदार्थ की भांति है.
भौतिक पदार्थों में भी मन के तीन आयामों की भांति लम्बाई, चौड़ाई व् गहराई के तीन
आयाम होते है. मन व् पदार्थ में तात्विक रूप से कोई भेद नहीं है. मन एक सूक्ष्म
पदार्थ है और पदार्थ एक स्थूल मन है.
तीन आयामों वाले मन में सामान्यतया हमारा सम्बन्ध केवल सतही
या ऊपरी आयाम से होता है. चेतन मन से हम सामान्य जीवनक्रम से संबधित होते हैं.
हमारी नींद व् सपने तो अचेतन मन से सम्बंधित होते हैं जबकि ध्यान और आनंद का
सम्बन्ध हमारे अतिचेतन मन से होता है. वैसे कठिन है अचेतन तक पहुचना फिर करीब करीब
असंभव है अतिचेतन तक पहुचना जो की वैसा ही है जैसे पानी में तैरती बर्फ की चट्टान
जो बहार से थोड़ीसी ही दिखती है मगर 75% पानी के अन्दर होती है जिसे जानने के लिए गहरे
पानी में गोता लगाना होता है.
ध्यान इसी लिए कठिन है. समाधि इसी लिए दुसाध्य है. व्यक्ति
की समग्र उर्जा, सम्पूर्ण प्रतिबद्धता इसमें खप जाती है ; केवल तभी अतिचेतन में
ऊध्र्वगामी गति संभव होती है. जागरण व् चिंतन की घटनाये चेतन मन से संपन्न होती
रहतीं है. चेतन मन की निःस्पन्द्ता में, निःशब्दता में, अचेतन की क्रियाशीलता
स्पष्ट होती है. लेकिन जब यह क्रियाशीलता भी शून्य हो जाती है, तब अतिचेतन में
प्रवेश मिलता है. आनंद का परम धाम यही है.
मन के बारे
में अन्य सूत्र:
०१.मन न छोटा है न
बडा है.
०२.यह न मेरा है न
तेरा है.
०३.यह न नारी है न
ही नर है.
०४.यह किसी स्तःन
भेद से परिभाषित नहीं होता.
०५.न ही समय के साथ
इसके रूप व् आकार में परिवर्तन होता है.
०६.मन तो जैसा है
वैसा ही है.
०७.उसके प्रक्रति व्
स्वरूप एक जैसे ही हैं.
०८.मन के गुण और
विशेषता एक साथ है.
०९.मन का भला विभाजन
कैसे हो सकता है. यानि अविभाज्य है.
१०.मन तो मन है उसमे
विचार उठते हैं.
११.मन ही
संकल्प-विकल्प का आधारभूत माध्यम है.
१२. मन चंचल है वह
किसी के पकड में नहीं आता.
१३. मन के
नियोजन-नियमन एवं सुनियोजित सञ्चालन में ही मन की महत्ता है.
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