उत्तेजना-आवेग
और आहार
आहार और आवेग का परस्पर गहरा सम्बन्ध है. संवेग के
गडबडाने, घटने या बढ़ने से खुराक प्रभावित होती है – यह सर्वविदित है. खुराक यदि
प्रभावित हुई, तो इसके दो प्रकार के परिणाम सामने आते हैं – दुर्बलता या मोटापा.
भोजन की मात्रा कम होने से कमजोरी आती है और अधिकता से स्थूलता बढ़ती है. स्थित
स्वस्थ तभी रह पाताहै, जब आवेग नियंत्रित हो. .
एम० एस० गजोनिया अपनी रचना “पैटर्न ऑफ़ इमोशंस” में लिखते
हैं कि हमारा पूरा शरीर तंत्र और उसकी गतिविधियाँ संवेगों पर आधारित है. इसके
अच्छा होने पर शरीर की क्रिया सामान्य बनी रहती है, जबकि इसकी बुरी पृक्रति समस्त
प्रणाली को असामान्य स्तर का बना देती है. ऐसी स्तिथि में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने
वाले आचार-व्यवहार से लेकर शरीर में सूक्ष्म आतंरिक क्रियाकलाप भी प्रभावित हुए
बिना नहीं रहते. भूख चूँकि सूक्ष्म अभ्यांतारिक हलचल की परिणति है, अतः उसपर भी
बव्नात्मक उथल-पुथल का स्पष्ट असर दिखाई पड़ता है. वे कहते हैं कि अध्यनों के दौरान
यह देखा गया है आल्हाद और तनाव की स्तिथि में मात्रा बढ़ जाती है जबकि उदासी और
निराशा उसे अस्वाभाविक रूप से घटा देती है.
यह सच है कि बार-बार अधिक मात्रा में अधिक कैलरी युक्त
भोजन लेने से मुटापा बढ़ता है, पर आखिर तनाव के दुरन भोजन लेने की बार-बार आवश्यकता
क्यों महसूस होती है ? इस सम्बन्ध में शरीर शास्त्रियों का कहना है कि इसे
आवश्यकता या इच्छा कहने की बजाय शरीर क्रिया का एक अंग मनना चाहिए. उनके अनुसार
शरीर जब तनावग्रस्त अवस्था में होता है, तो भीतरी प्रणालियाँ उसे मिटने के लिए अपने ढंग से प्रयास आरम्भ कर
देती हैं और ऐसे रस-रसायन का निर्माण करती हैं, जो आतंरिक दबाब को घटा सके. इस
क्रम में भूख को उत्तेजित करने वाला रसायन का निर्माण भी होता है. इस रसायन के
द्वारा काया तनाव को न्यून करने का उपक्रम करने लगती है,. यही करण है कि भोजन के
मध्य व्यक्ति तनाव से कुछ राहत महसूस करता है. यह राहत यूँ तो अस्थायी और अस्थिर
होती है, पर जब तक रहती है, व्यक्ति को आराम दायक स्तिथि प्रदान किये रहती है.
इसी प्रकार जब कोई बहुत गहरा भावात्मक धक्का पहुँचता है
तो एक बार फिर समस्त आतंरिक संस्थानों का व्यतिक्रम हो जाता है उससे आदमी दुसरे
ढंग से प्रभावित होता है. चूँकि तनाव और विषाद में बहरी लक्षणों के साथ-साथ आतंरिक
संरचना में फर्क होता है, इसलिए देह-संसथान उन दोनों के साथ पृथक-पृथक ढंग से पेश
आता है. तनाव में जहाँ भूख उत्तेजित होती है वहां अवसाद में भूख घटती है. दबाब की
स्तिथि में यदि क्षुधा बढ़ती है, तो इसका एक ही मतलब है – शिथिलता लाना और काया को
अस्वाभिकता से मुक्त रखना. चूँकि उदासी की दशा में शरीर प्रायः तनाव रहित होता है,
अतः भूख बढा कर घटाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. इसी कारण से ऐसे समय में
भीतरी यंत्र क्षुधावर्धक रस उत्पन्न नहीं करते.
हाल के शोधों से भी इस बात को बल मिलता है कि भोजन और
आवेग के बीच गहरा लगाव है. शिकागो मेडिकल स्कूल के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि
डाइटिंग करने वाले लोग सामान्यजनों की तुलना में तनाव, आवेग और उत्तेजना के प्रति
अधिक संवेदनशील होते हैं. उनके अनुसार यदि ऐसे लोग डरावने दृश्य देख ले, तो उनके
संवेग असामान्य ढंग से वृद्धि हो जाती है. इस बढ़ोत्तरी के कारण इस मध्य उनकी आहार
की मात्रा में भी आश्चर्य जनक वृद्धि होती देखि गई है.
एक प्रयोग के दौरान वहां के अन्वेषणकर्ताओं ने इस बात की
पुष्टि कर ली. शोधकर्ताओं ने इसके लिए तीस महिलाओं का चयन किया. इसमें पंद्रह स्त्रियाँ
ऐसी थी, जो डाइटिंग करती थी. इन सभी की निश्चित संख्या में कुछ सूखे खाद्यान्न के
पैकेट दिए गए. इसकी उपरांत उन्हें एक भयोत्पादक फिल्म “हलोबीन” के कुछ डरावने
दृश्य दिखाये गये. आधा घंटा पश्चात फिल्म की समाप्ति पर जब उनकी खाद्य सामग्री का
लेखा-जोखा लिया गया, तो अध्यनकर्ता यह देख कर विस्मय में पड़ गए कि जो महिलाएं
नियमित डाइटिंग करती थी, उन सबने डाइटिंग नहीं करने वाले ग्रुप से दुगने परिमाण
में भोजन उदरस्थ किया.
उक्त परिक्षण से वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकला कि डरावने
दृश्यों से तनावजन्य आवेग में वृद्धि होती है. काया उसे अपने ढंग से सुधारने के
क्रम में आतंरिक क्रिया-विधि में परिवर्तन लाती है. अंतर के इस बदलाव के कारण भूख
बढाने वाले रसों का निर्माण होता है. इससे जठराग्नि की ज्वाला भड़कती है. क्षुधा
बढ़ती है तो बार-बार खाने की आवश्यकता अनुभव होती है, जिसके कारण मोटापे में
उतरोत्तर विकास होने लगता है. इस वृद्धि के साथ शारीरिक दिक्कतें बदने लगती हैं,
जिससे व्यक्ति तब तक छुटकारा नहीं पा सकता, जब तक उसके पीछे के निमित्त को
नियंत्रित न किया जाये. देखा गया है की भावनात्मक संवेग को साध लेने पर फिर इस
प्रकार की शिकायत देर तक टिकी नहीं रह पाती. इस लिए विशेषज्ञ इस सम्बन्ध में प्रायः
यह सलाह देते देखे जाते हैं कि आवेग और उत्तेजना पर यदि अंकुश लगाया जा सका, तो एक
सीमा तक मुटापे को नियंत्रित किया जा सकना संभव है.
यों तो चर्बी बढ़ने के कई अन्य कारण भी है, पर सबमे प्रमुख
भावात्मक अव्यवस्था है. इससे भीतरी तंत्रों पर दबाव पड़ता है, जो चर्बी को बढ़ाने
लगता है. इन दिनों अमरीका में पिछले समय की तुलना में ५१ प्रतिशत लोगों में यह
शिकायत बढ़ी है. इसका प्रमुख कारण वहां डरावने और हिंसक फिल्मों के प्रति बढ़ती
लोकप्रियता है. स्वास्थ-संतुलन वसुतः अधिकाधिक इस बात पर निर्भर है कि हमारे आहार-विहार
और दिनचर्या क्या है ? किस वातावरण और परिवेश में हम रहते हैं ? हमारी संवेगात्मक
स्तिथि कैसी है ? इन बातों पर समुचित ध्यान दिया जा सके और इन्हें यदि असामान्य
बनने से रोका जा सके, तो उन कारकों को भी नियंत्रित किया जा सकना शक्य है, जो
शारीरिक स्थूलता वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं.
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