(परामनोविज्ञान)
परे और पार
के सच को जानने की चाहत
मानवीय शक्तियों से परे, प्रकृति के पार के सच को ढूढने,
जानने और पाने की चाहत चिर पुरातन है. अपना देश भारत हो या फिर दुनिया का कोई
दूसरा कोना, हर जगह इसकी झलक मिलती है. यह हर देश का साहित्यिक सत्य है. अपने यहाँ
के रामायण, महाभारत सहित वैदिक साहित्य के आलावा पश्चमी देशों के प्राचीन नाटकों,
इतिहास कथाओं, मध्य एवं नव जागरण काल की कविताओं में इनका व्यापक उल्लेख मिलता है.
जर्मन साहित्यकार शीलर, विलैंड एवं गेटे ने अपने साहित्य में इस पर काफी प्रकाश
डालने की कोशिश की है. ब्रिटेन के होरेस कालपोल ने अपनी कृति “केस्टल ऑफ़ ओट्रांटो”
में यह तर्कपूर्ण ढंग से स्पष्ट किया कि शक्ति और सत्य की सीमा मनुष्य और दृश्य
प्रकृति तक ही सिमटी नहीं है. यह इससे परे और पार भी है. उन्होने ने बताया नेचुरल
के साथ ही सुपर नेचुरल का भी अस्तित्व है.
मैथ्यु ग्रेगरी लेविस ने “द माँक” में इसके कुछ अलग रूप
तलाशे. यही रीति मेरी शेली ने अपनी रचना “फ्रेंकस्टीन” में निभाई. पिछली बीसवीं
सदी में ‘ सुपर नेचुरल’ के सच का पर्याप्त साहित्यिक विस्तार हुआ. अमेरिका में
एडगर एलन पी, वाशिंगटन इरविंग, नेथेनील हावथोर्न, रूस में पुश्किन, जर्मनी में
हाफमेन, पेरिस में नोडियार ने अपने साहित्य में सुपर नेचुरल की रोमांचक व्याख्याएं
की. अमेरिका में एच.वी.लोवक्राफ्ट ने अपने ज़माने की पूरी पीढ़ी पर इसका जादुई असर
छोड़ा. ब्रिटेन में एम्.आर.जेम्स ने आत्मा का सच बयान कर सबको आश्चर्य में डाल
दिया. इसी तरह आर्थर मेकन ने अपनी कृति में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान एक सैनिक
द्वारा स्वर्ग से परी उतरने की आँखों देखी घटना का रोचक वर्णन करके खासी
लोकप्रियता अर्जित की.
सुपर नेचुरल या अतिप्राकृतिक सत्य से संभावित घटनाओं को,
परिकल्पनाओं को अपने साहित्य में उतारने, उकेरने वाले लेखकों में डिकेंस, कोपलींग,
वाल्टर डी ला मरे, हेनरी जेम्स, और डी. एच लारेंस को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.
अमरीकी लेखक रहे रेड ब्राडबरी ने अपनी कविताओं में इसकी सूक्ष्मता को अंकित करने
की कोशिश की. एच. जी. वेल्स ने पहली बार सुपर नेचुरल या अतिप्राकृतिक कथा को
विज्ञान कथा का रूप दिया.
सुपर नेचुरल या अतिप्राकृतिक की वास्तविकता क्या है, केवल
कथा कहानी या फिर सृष्टि का अदभुत किन्तु अनुभूत किया जाने वाला सत्य. यह उहा-पोह
सदा रहा है और आज के विज्ञान युग में भी है. तर्क और प्रयोग की कसौटी वाले वर्तमान
जीवन में एक कथा यह भी चल पड़ी है कि ऐसी चीजों को महज अन्धविश्वास कह कर उनकी जैम
कर हंसी उड़ाई जाय. हालाँकि इस सन्दर्भ में प्रख्यात वैज्ञानिक विलियम नैपियर का कथन
महत्वपूर्ण है, जो उन्होने अपनी विख्यात कृति ‘ द एक्सपेरीमेंट्स एंड
एक्सपीरियेंसेस’ में कहा है. उनका कहना है कि ज्ञान और सत्य का विस्तार अनंत है,
जबकि मानवीय शक्ति की, उसके द्वारा अनुभव करने की सीमा है. आधुनिकतम उपकरणों के
द्वारा इस सीमा को थोडा-बहुत बढाया तो जा सकता है, पर इतना अधिक नहीं कि ज्ञान और
सत्य के अनंत विस्तार को समूचे रूप में पाया, परखा और जाना जा सके.
विज्ञानवेत्ता विलियम नेपिएर के शब्दों में ‘ ज्ञान और
सत्य के अन्नंत विस्तार का यह असीम अंश जो वैज्ञानिक प्रयोगों और मानवीय बुद्धि की
सीमाओं से परे है, वही सुपर नेचुरल या अतिप्राकृतिक है. मानव की अन्तःसंवेदना को
यदा-कदा इसकी झलक-झांकी तो मिल ही जाती है, पर इसकी तर्कपूर्ण या बुद्धिसम्मत
व्याख्या नहीं हो पाती. इसके बावजूद सुपर नेचुरल के सत्य को इसकी सत्ता और शक्ति
को नकारा नहीं जा सकता. महान वैज्ञानिक विलियम स्टेनले जेवान्स ने अपनी सुविख्यात
कृति “द प्रिंसिपल ऑफ़ साइंस” में सत्य को कुछ इस ढंग से उद्घाटित किया है. उनके
अनुसार कोई भी सच्चा विज्ञान किसी भी सत्य के अस्तित्व में सिर्फ इसलिए इंकार नहीं
कर सकता, क्योकि वह उसके द्वारा तौला या मापा नहीं जा सका. यह भी हो सकता है कि वह
सत्य उसकी तौल या माप की वर्तमान सीमाओं से बाहर हो. प्रकृति में ऐसे अनेकों
आश्चर्य हैं, अस्तित्व के ऐसे अनेकों सत्य हैं, जिन्हें जान पाने में हमारी बुद्धि
के बौनेपन से उपजी असमर्थता के कारण इनके आश्चर्यजनक अस्तित्व को नकारा नहीं जा
सकता.
इस वैज्ञानिक सत्य को स्वीकार करके इस युग के कई
वैज्ञानिकों ने सुपर नेचुरल के अन्वेषण-अनुसन्धान के प्रयास किये हैं. इस क्रम में
विज्ञानवेत्ता स्टीवेंसन, एस.जी.सोल, एवं जे.बी.राइन का कार्य सराहनीय है.
जे.बी.राइन ने अपनी कृति “न्यू फ्रंटियर्स ऑफ़ माइंडस” में मानव मन और मानवीय
शक्तियों से परे और पार नए क्षितिजों को पहचानने और परखने की कोशिश की है. उनकी यह
पुस्तक ‘सुपर नेचुरल’ के सच की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करने का प्रयास है. इस
कार्य को इस दिशा में अनुसन्धान कार्य के लिए उत्सुक वैज्ञानिकों को पर्याप्त
दिशादर्शन एवं मार्गदर्शन मिलता है.
सुपर नेचुरल के वैज्ञानिक सत्य की व्यापकता के नूतन आयाम
को उद्घाटित करने में मनोवैज्ञानिक फ्रायड का योगदान सराहनीय है. उन्होने अपनी
महत्वपूर्ण कृति “साइकोलाजी ऑफ़ आकल्ट
फिनामिना” में इसकी सत्ता और सत्य को अपनी स्वीकृति प्रदान की है. उन्होने इसे ESP
(एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) के रूप में स्वीकारा है.
“साइको एनालिसिस एंड टेलीपैथी” नाम की पुस्तक में फ्रायड ने सुपर नेचुरल की सच्चाई
का उल्लेख किया है. फ्रायड की भांति सुविख्यात मनोविज्ञानी जुंग ने सुपर नेचुरल के
विज्ञान पर अपना विश्वास जताया है. उनका कहना है कि मनुष्य की अन्तःचेतना परिष्कृत
और संवेदना विकसित हो, तो सुपर नेचुरल एक शब्द नहीं तथ्य और सत्य की अनुभूति के
रूप में समझ में आने लगता है.
इस दोनों वैज्ञानिक विभूतियों के अतिरिक्त और भी
विज्ञानवेत्ताओं ने इस पर अनुसन्धान करने का प्रयास किया है. इसके अनुसार इसकी
अत्याधुनिक खोज का आधार डेप्थ साइकोलोजी है, कई विशेषज्ञ इसका अध्यन
परामनोविज्ञानी या पैरासाइकोलोजी के रूप में करते हैं. आधुनिक फ्रेंच लेखक लुईस
पावेल और जक्स वर्गीयर ने अपनी सुविख्यात रचना “द डान ऑफ़ मैजिक” में इसको आधुनिक
क्वांटम सिद्धांत के अंतर्गत समझाने की कोशिश की है. उनके अनुसार कुछ ऐसे सत्य
होते हैं, जिनकी भौतिक ढंग से व्याख्या संभव नहीं है. इन्हें केवल मानवीय
अन्तःचेतना की विकसित शक्तियों से जांचा-परखा और अनुभव किया जा सकता है,
आधुनिक वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा अनुभव की जा
रही मानवीय अन्तःचेतना के विकास की यह आवश्यकता भारतीय ऋषियों द्वारा प्रणीत
योग-विज्ञान द्वारा पूरी होती है. योग वह वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिससे मानव की
अंतर्शक्तियों का सचेतन रूप में सम्पूर्ण विकास संभव है. इस विकसित स्थिति में
सुपर नेचुरल एक साहित्य कल्पना की सृष्टि नहीं, मानव की अनुभूत दृष्टि बन जाती है.
मनोवैज्ञानिक कार्लगुस्ताव युंग ने स्वयं भी वर्षों तक ध्यान का अभ्यास करके इसकी
प्रमाणिकता को परखा और जाना था. बाद के वर्षों में उन्होने नोबल पुरुस्कार विजेता
भौतिकशास्त्री वुल्फाग पौली के साथ मिलकर कुछ प्रयोग भी संपन्न किये. अपने
निष्कर्ष में उन्होने कहा कि आधुनिक भौतिक एवं आधुनिक मनोविज्ञान कई क्षेत्रों में
एक-दुसरे से सम्बंधित दिखाई पड़ते हैं. यदि योगविज्ञान की साधनात्मक दृष्टि और इस
आधुनिक विज्ञान की व्याख्या पद्धति का संयोग हो सके, तो सुपर नेचुरल का वैज्ञानिक
सत्य, विज्ञान की एक नवीं शाखा के रूप में जन्म और जीवन ग्रहण कर सकता है.
अध्यात्म एवं विज्ञान के इस समन्वय से मानवीय शक्तियों से परे एवं प्रकृति से पार
के सच का अनुभव एवं व्याख्या की जा सकती है.
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